श्री शतचंडी महायज्ञ
Shri Shatchandi Mahayagya
श्री शतचंडी महायज्ञ
श्री बूढ़ीमाता मंदिर मालवीयगंज में श्री शतचंडी महायज्ञ का इस बार 41 वा वर्ष था. सन 1975 में वीरान पडे़ इस स्थान पर एक छोटी मढि़या थी और इस निर्जन, सुनसान इलाके में स्थित छोटी सी मढि़या के जीर्णोद्धार के मकसद से यहां प्रथम बार श्री शतचंडी महायज्ञ कराने का निर्णय लिया गया. उस वक्त श्री सालगराम पगारे और श्री बम बहादुर के साथ डा. राजेंद्र अग्रवाल और दुष्यंत अदलिया, हरकचंद मेहता ने भावसार बाबू के सामने मंदिर में जीर्णोद्धार कराने के लिए यहां शतचंडी महायज्ञ कराने की भावना रखी. भावसार बाबूजी की सहमति के बाद सभी ने विश्वनाथ दादा से इसमें मदद का अनुरोध किया. दोनों की मदद और इन भक्तों के काम के आधार पर सन 1975 में श्री बूढीमाता मंदिर में शतचंडी महायज्ञ की नींव पड़ी.
पहले यह यज्ञ पांच दिन का होता था जो कि 7-8 साल तक चलता था, परंतु अब यह सात दिन का हो गया है. पिछले 41 सालों से यज्ञ की शुरूआत भावसार दादाजी के यहां महाकाली दरबार से होती है जहां पर पहले पूजा अर्चना होती है और यज्ञ की ज्योत जलाई जाती है इसके बाद पूजा के 31 कलश यात्रा यहीं से प्रारंभ होती है इन कलशों की स्थापना यज्ञशाला में की जाती है जो कि अंतिम दिन यज्ञ समाप्ति के बाद श्रद्धालु लेकर जा सकते हैं. आयोजन की शुरूआत में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ा जिसमें सामान चोरी चला जाना जैसी घटनाएं भी शामिल रही. शुरूआत में श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान एवं चंदे से ही यह आयोजन संपन्न होता था परंतु धीरे धीरे यह परंपरा समाप्त कर दी गई. अब किसी भी प्रकार का कोई चंदा एकत्र नहीं किया जाता जिस किसी को दान देना होता है, वे इस तरह दान देकर मंदिर समिति से रसीद प्राप्त कर सकते हैं.
शतचंडी महायज्ञ के सात दिनों में शुरूआत घट यात्रा से होने के बाद घट स्थापना, पंचांग पूजन, ब्राहण वरण, मण्डपस्थ देवता पूजन, श्री रामरचित मानस के सुंदरकांड पाठ व श्रीमद देवी भागवत पाठ प्रारंभ तथा अरणि मंथन द्वारा अग्नि प्राकटय होता है. इसके बाद प्रतिदिन सुबह व दोपहर में दुर्गासप्तशती पाठ एवं रूद्राभिषेक के साथ हवन, आरती एवं प्रसाद वितरण और यज्ञ के अंतिम दिन पूर्णाहुति पूजन, आरती, प्रसाद वितरण ब्राहण एवं कन्या भोजन व महाप्रसाद इसके अलावा प्रतिदिन दोपहर में प्रवचनकर्ता के द्वारा प्रवचन होते हैं.
इकतालीस वर्ष पूर्व डाली गई नींव का परिणाम है कि आज श्री बूढ़ी माता मंदिर में होने वाले इस महायज्ञ में हर वर्ष इटारसी, होशंगाबाद और आसपास के लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. 41 वर्ष पूर्व हर घर से एक रूपए और कुछ बड़े दानदाताओं की मदद से लगाया गया छोटा सा पौधा पेड़ बन गया.